ऐसा भी हुआ इक रोज़ के
मैनें दर्द का दामन छोड़ दिया
फूलों पे हसी, चेहरों पे ख़ुशी
मसर्रत हरसू फैल गयी
हैरां हो कर मैनें पूछा
ये जादू आखिर कैसे हुआ
तब हलकी सी इक लहर उठी
जो रूह की गहराई से निकली
अलफ़ाज़ ये गूंजे कानों में ---
कुछ और नहीं, तेरा अक्स है ये
कुछ भी तो तुझसे जुदा नहीं
किसने ये कहा मैं क्यों पूछूं
वो मुझमे है, मैं उसमे हूँ
ये यकीन ए मुस्ताकिम काफ़ी है
मैनें दर्द का दामन छोड़ दिया
फूलों पे हसी, चेहरों पे ख़ुशी
मसर्रत हरसू फैल गयी
हैरां हो कर मैनें पूछा
ये जादू आखिर कैसे हुआ
तब हलकी सी इक लहर उठी
जो रूह की गहराई से निकली
अलफ़ाज़ ये गूंजे कानों में ---
कुछ और नहीं, तेरा अक्स है ये
कुछ भी तो तुझसे जुदा नहीं
किसने ये कहा मैं क्यों पूछूं
वो मुझमे है, मैं उसमे हूँ
ये यकीन ए मुस्ताकिम काफ़ी है
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