किसी के जिगर का टुकड़ा था
जो बारामुल्ला में गवा बैठा जाँ
बिलखती, तड़पती होगी उसकी माँ
हम खामोश हैं, और बे परवाह
रोज़ मरते हैं ख़ास ओ आम
इंसानियत का रिश्ता तो है
पर मसरूफ रखता है काम
जो बारामुल्ला में गवा बैठा जाँ
बिलखती, तड़पती होगी उसकी माँ
हम खामोश हैं, और बे परवाह
रोज़ मरते हैं ख़ास ओ आम
इंसानियत का रिश्ता तो है
पर मसरूफ रखता है काम
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