सिसकती राहों को छोड़ कर मैं
जब राह नई कोई चुनती हूँ
तो टकरा कर गम के पथर से
गिरती, संभलती, उठती हूँ
फिर आँसू बहते हैं ऐसे
की थमने का वो नाम ना लें
इस राह पर तो फूल ही थे
काँटे क्यों दामन से लिपटे
क्या राह कोई भी सुगम नहीं
और कोमल हाथों को भी
लड़ना पड़ता है कदम कदम
दो मुठ्ठी लेनी हो जो खुशी
(Priya VK Singh)
जब राह नई कोई चुनती हूँ
तो टकरा कर गम के पथर से
गिरती, संभलती, उठती हूँ
फिर आँसू बहते हैं ऐसे
की थमने का वो नाम ना लें
इस राह पर तो फूल ही थे
काँटे क्यों दामन से लिपटे
क्या राह कोई भी सुगम नहीं
और कोमल हाथों को भी
लड़ना पड़ता है कदम कदम
दो मुठ्ठी लेनी हो जो खुशी
(Priya VK Singh)
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