क्या कहूँ
कैसे कहूँ ?
सामने जब तुम होते हो
नज़रें बात करती हैं
कुछ किस्से आँसू कहते हैं
कोई कहानी तबस्सुम में खिलती है
सुकूत कभी कुछ बोलता है
हाथों की जुम्बिश से तसवीरें खिचती हैं
लेकिन जब फ़ासले होते हैं
कहने में अज़ीयत होती है
लफ्ज़ बेमाने से लगते हैं
रोज़ बा रोज़ की बात बस होती है
कैसे कहूँ
कैसे समझाऊं ?
कैसे कहूँ ?
सामने जब तुम होते हो
नज़रें बात करती हैं
कुछ किस्से आँसू कहते हैं
कोई कहानी तबस्सुम में खिलती है
सुकूत कभी कुछ बोलता है
हाथों की जुम्बिश से तसवीरें खिचती हैं
लेकिन जब फ़ासले होते हैं
कहने में अज़ीयत होती है
लफ्ज़ बेमाने से लगते हैं
रोज़ बा रोज़ की बात बस होती है
कैसे कहूँ
कैसे समझाऊं ?
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